पत्रकार की हत्या और बस्तर का काला सच

बस्तर, 08 जनवरी 2025: यदि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, तो 3 जनवरी की रात बस्तर के बीजापुर में वह एक ठेकेदार के सेप्टिक टैंक में दफ्न मिली। यह हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या है।

पत्रकार मुकेश चंद्राकर की नृशंस हत्या ने न केवल सरकार और प्रशासन की विफलता उजागर की है, बल्कि बस्तर में पनप रहे ठेकेदारों, नौकरशाही और राजनीति के अपवित्र गठजोड़ को भी बेनकाब किया है। यह वही बस्तर है, जहां आदिवासियों के नाम पर अरबों रुपये खर्च होते हैं, लेकिन उनके हिस्से में न सड़क आती है, न स्कूल और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं।

मुकेश चंद्राकर की हत्या: लोकतंत्र पर हमला

मुकेश चंद्राकर एक निडर पत्रकार थे, जिन्होंने सड़क निर्माण में हुए 120 करोड़ रुपये के घोटाले को उजागर किया था। इस घोटाले के पीछे सुरेश चंद्राकर नाम का ठेकेदार है, जो सलवा जुडूम का पूर्व एसपीओ रह चुका है और आज राजनीतिक संरक्षण प्राप्त माफिया सरगना के रूप में कार्य कर रहा है।

मुकेश की हत्या से पहले भी बस्तर में कई पत्रकारों को धमकाया गया, फर्जी मामलों में फंसाया गया और मारा गया। बाप्पी रॉय, कमल शुक्ला और कई अन्य पत्रकारों पर हमले इसी तंत्र का हिस्सा हैं।

कांग्रेस-भाजपा का दोहरा चरित्र

मुकेश चंद्राकर की हत्या के बाद कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि बस्तर की लूट में दोनों बराबर की भागीदार हैं। सड़क निर्माण का यह ठेका 16 टुकड़ों में बंटा था, लेकिन सभी टुकड़े सुरेश चंद्राकर के हाथ में कैसे पहुंचे? पुलिस और प्रशासन ने इस पूरे मामले में क्यों चुप्पी साध रखी थी? क्यों एसपीओ रहे अपराधियों को ठेकेदार बनाकर बस्तर का भविष्य गिरवी रखा जा रहा है?

बस्तर: कॉर्पोरेट और हिंसा का खेल

बस्तर में पिछले 24 वर्षों में हजारों करोड़ रुपये के घोटाले हुए हैं। सड़क निर्माण से लेकर खनन तक, हर क्षेत्र में ठेकेदार, पुलिस, प्रशासन और नेताओं की सांठगांठ है। आदिवासियों के नाम पर विकास के दावे किए जाते हैं, लेकिन सच यह है कि यह पूरा इलाका कॉर्पोरेट और माफिया का अड्डा बन चुका है।

पत्रकार सौमित्र रॉय ने लिखा है: “यह अपराधियों की सत्ता का विकास है, संघियों का विकास है, सत्ता को तेल लगाने वालों का विकास है, और गरीब आदिवासियों के हक की बात करने वालों का विनाश है।” यही बस्तर की हकीकत है।

निष्पक्ष जांच की मांग

मुकेश चंद्राकर की हत्या की जांच एसआईटी को सौंपी गई है, लेकिन इससे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं, और सरकारें इसे रोकने में असफल रही हैं। इस मामले की सीबीआई जांच या हाई कोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच ही सच्चाई सामने ला सकती है।

भारत में पत्रकारों की स्थिति

‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, 2005 से 2024 के बीच भारत पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में से एक बन गया है। 2014 से अब तक 28 पत्रकार मारे जा चुके हैं, और भारत प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 159वें स्थान पर पहुंच चुका है। यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।

निष्कर्ष

मुकेश चंद्राकर सिर्फ एक पत्रकार नहीं थे, वे बस्तर की अवाज थे। उनकी हत्या हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या भारत में सच बोलना अब अपराध बन गया है? क्या सरकारें पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगी, या फिर लोकतंत्र का यह स्तंभ इसी तरह ठेकेदारों और माफिया के हाथों कुचलता रहेगा?

मुकेश की हत्या के बाद भी उनकी पत्रकारिता और सच्चाई की लड़ाई जारी है। बस्तर के संघर्षशील पत्रकारों को दबाया नहीं जा सकता।

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